श्री चेतनदास जी महाराज जी

परम पूजनीय परम तपस्वी श्री श्री चेतन दास जी महाराज जी को कोटि कोटि प्रणाम !!

श्री चेतन दास जी महाराज जी का जन्म 18 जून 1924 को गांव रामगढ़ भवनौर में हुआ। उनके पिता जी का नाम टेक चंद और माता जी का नाम मयूली था। इनके छ: भार्इ थे। महाराज जी सबसे छोटे थे। महाराज जी की पढ़ार्इ रामगढ़ में ही हुर्इ। पढ़ार्इ के बाद लकड़ी के कारीगर का काम किया। ये फौज में भी भर्ती हुए। मगर प्रभु की कुछ और ही इच्छा थी। महाराज जी की तबीयत कुछ खराब रहने लगी तब वह अपनी नौकरी छोड़कर दरबार बाबा घाटी में श्री श्री हंसराज जी महाराज के पास आ गए। तब वह श्री हंसदास जी महाराज की कृपा से बिल्कुल ठीक हो ्रगए और बापिस घर नहीं गए। और महाराज जी के चरणों में अपने माता-पिता जी की आज्ञा लेकर रहने लगे। तब वह पहले महाराज जी की आज्ञा से गऊओं की सेवा में लग गए। फिर उन्होंने महाराज जी की आज्ञा अनुसार घराट जहां पर उन्हें गेहूं पीसने की सेवा मिल गर्इ।

लगातार बारह वर्ष की सेवा में पश्चात श्री हंसदास जी महाराज ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया। वह अपने गुरू महाराज की आज्ञा का पालन करते थे और उनके अनुसार ही जीवन जीते थे। इस तरह वह घाटी दरबार में सेवा और भकित साधना करते-करते र्इश्वर का रूप बन गए। संगत भी उनके साथ बहुत प्रेम करने लगी। महाराज जी जैसे संत महापुरूष इस संसार में हम सबका भला करने और र्इश्वर के साथ जोड़ने के लिए ही प्रकट होते हैं। ऐसे ही कमारे श्री चेतन दास जी महाराज हैं जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन लोगों की भलार्इ और उनके कष्ट दूर करने में लगा दिया और स्वयं कष्ट सहकर तप, त्याग के साथ जीवन जीते हुए हम सभी संगत का उद्धार करते रहे। घाटी दरबार में रहते हुए तपस्या करते हुए जितना वह संगत की सेवा करते थे उतना ही उनका लगाव प्रकृति और जानवरों प्रति भी था। वह सबमें र्इश्वर का वास देखते थे। परन्तु दुर्भाग्यवश जब 1979 को श्री श्री श्री हंसदास जी महाराज अपना चोला त्यागकर ब्रह्रालीन हो गए तब श्री चेतन दास महाराज जी को गददी का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। 1979 से लेकर 15 मार्च 2003 तक बड़े अच्छे ढंग से डेरे का कार्य सम्भाला और संगत का उद्धार करते रहे। 15-3-2003 को दुर्भाग्यवश श्री चेतन दास महाराज जी हम सभी संगत को छोड़कर ब्रह्रालीन हो गए। श्री चेतन दास महाराज जी युगों-युगों तक संगत के हृदय में निवास करते रहेंगे।

ghatiwale baba ji
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मंत्र सिमरण करे -- मौक्श्र का मार्ग ।।